GST यानी वस्तु और सेवा कर (Goods and Services Tax) को आज भारत के सबसे बड़े कर सुधारों में से एक माना जाता है। लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया आसान नहीं थी। यह एक लंबी यात्रा रही है जो कई सालों के विचार, चर्चा और सहमति से होकर गुजरी है।
शुरुआत कब हुई?
GST का विचार सबसे पहले 2000 में सामने आया, जब भारत सरकार ने एक समिति गठित की थी जिसकी अगुवाई विजय केलकर ने की। इस समिति ने सुझाव दिया कि भारत को एक एकीकृत टैक्स सिस्टम अपनाना चाहिए, जिसमें सारे indirect taxes को मिलाकर एक ही टैक्स लगाया जाए — जिसे बाद में GST कहा गया।
बीच के साल: सुझाव, संशोधन और बहस
2006 में, तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि भारत में 1 अप्रैल 2010 से GST लागू किया जाएगा। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस पर लम्बी चर्चा चली, क्योंकि राज्यों को डर था कि उनके टैक्स कलेक्शन पर असर पड़ेगा।
GST को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना जरूरी था। इसलिए 2011 में 115वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, लेकिन राज्यों के आपत्ति और राजनीतिक मतभेदों की वजह से यह पास नहीं हो सका।
असली प्रगति कब हुई?
GST पर असली काम तब शुरू हुआ जब 2014 में नई सरकार सत्ता में आई। इस सरकार ने GST को एक प्रमुख सुधार के तौर पर आगे बढ़ाया और 2016 में 122वां संविधान संशोधन विधेयक संसद में पेश किया गया। इस बार इसे ज़रूरी समर्थन मिला और अगस्त 2016 में यह विधेयक पास हो गया।
इसके बाद एक GST परिषद (GST Council) बनाई गई जिसमें केंद्र और सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल थे। इस परिषद ने टैक्स स्लैब्स, नियम और दरें तय करने का काम किया।
लागू होने की तारीख
GST को आखिरकार 1 जुलाई 2017 को पूरे देश में लागू किया गया। इस दिन को भारत के टैक्स इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है क्योंकि इसने सैकड़ों पुराने टैक्सों को खत्म कर दिया और पूरे देश में एक समान टैक्स प्रणाली शुरू की।
निष्कर्ष
GST की यात्रा सिर्फ एक टैक्स सुधार नहीं थी, बल्कि यह भारत के संघीय ढांचे, राजनीति और आर्थिक सोच का भी एक बड़ा उदाहरण है। यह दिखाता है कि किस तरह एक जटिल और विविध देश में भी सहमति बनाकर एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। आज GST न सिर्फ एक टैक्स है, बल्कि “एक देश, एक टैक्स, एक मार्केट” की सोच को साकार करता है।